Subhadra kumari chauhan: “खूब लड़ी मर्दानी (khoob ladi mardani poem) वह तो झांसी वाली रानी थी।” झांसी की रानी को याद करते हुए ये पंक्तियां कई बार पढ़ी जाती हैं। देश के लगभग हर बच्चे को याद है। इस कविता की लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। भारत की अग्रणी लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा कुमारी चौहान की आज 117वीं जयंती है। सुभद्रा कुमारी चौहान की उपलब्धियों का सम्मान करते हुए गूगल Google ने उन्हें अपना डूडल Doodle समर्पित किया है। इस डूडल में सुभद्रा कुमारी साड़ी पहने नजर आ रही हैं। उनके हाथ में कलम है और वह कुछ लिख रही हैं। उनके पीछे रानी लक्ष्मीबाई और स्वतंत्रता आंदोलन की झलक है। आइए जानते हैंं सुभद्रा कुमारी चौहान कौन थी। (Who was subhadra Kumari Chauhan)
डूडल को न्यूजीलैंड की गेस्ट आर्टिस्ट प्रभा माल्या ने बनाया है। उनकी राष्ट्रवादी कविता “झांसी की रानी” को व्यापक रूप से हिंदी साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली कविताओं में से एक माना जाता है।
Subhadra Kumari Chauhan सुभद्रा कुमारी चौहान कौन थी
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के पास निहालपुर गांव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही कविताएं लिखने का बहुत शौक था। उन्होंने महज 9 साल की उम्र में पहली कविता लिखी थी। ये कविता उन्होंने एक नीम के पेड़ पर लिखी थी। उनके कुल दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। दो कविता संग्रह का नाम है- मुकुल और त्रिधारा। तीन कहानी संग्रह का नाम है- मोती, उन्मादिनी और सीधे साधे चित्र। उनकी तमाम रचनाओं में ‘झांसी की रानी’ कविता सबसे ज्यादा मशहूर है। इसी कविता ने उन्हें जन-जन का कवि बना दिया।
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वह स्कूल के रास्ते में घोड़े की गाड़ी में भी लगातार लिखने के लिए जानी जाती थीं, भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में एक भागीदार के रूप में, उन्होंने अपनी कविता का इस्तेमाल दूसरों को अपने देश की संप्रभुता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। सुभद्रा चार बहनें और दो भाई थे। वह स्वतंत्रता आंदोलन में आगे आई और कई बार जेल भी गई।
महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन भाग लेने वाली पहली महिला
सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने भीतर की भावनाओं और जज्बे को सिर्फ कागज पर ही नहीं उतारा, बल्कि उसे असल जिंदगी में जिया भी है। वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं। सुभद्रा कुमारी ने भारत की आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई, जिस वजह से कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से दूसरे लोगों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए भी प्रेरित किया था। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं ने हमेशा आजादी के दीवानों को प्रेरित किया।
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44 साल की उम्र में हुआ निधन
15 फरवरी 1948 को उनका निधन हो गया। जब उनका निधन हुआ उनकी उम्र 44 साल की थी। अपनी मृत्यु के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक बार कहा था, “मेरे मन में तो मरने के बाद भी धरती छोड़ने की कल्पना नहीं है। मैं चाहती हूं, मेरी एक समाधि हो, जिसके चारों तरफ मेला लगा हो, बच्चे खेल रहें हो, स्त्रियां गा रही हो और खूब शोर हो रहा हो।”आज पूरा देश उनके 117वीं जयंती पर उन्हें याद कर रहा है।