Mahatma Jyotiba Phule Punyatithi | लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल, पत्नी को पढ़ाकर बनाया टीचर , ऐसे थे महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन, पढ़ें उनके अनमोल विचार

महात्मा ज्योतिराव फुले पुण्यतिथि (Mahatma Jyotiba Phule Punyatithi 2023) हर साल 28 नवंबर को मनाई जाती है। वह एक जाति-विरोधी कार्यकर्ता, लेखक, विचारक और समाज सुधारक थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। भारत में, सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने में उनके प्रयासों और योगदान का सम्मान करने के लिए हर साल ज्योतिबा फुले जयंती मनाई जाती है। इस दिन देश के नागरिकों को बहुआयामी समाज सुधारक के बारे में बेहतर समझ होनी चाहिए। ज्योतिबा, जैसा कि वे आमतौर पर जाने जाते थे, और उनकी पत्नी, सावित्रीबाई फुले ने भारत में महिलाओं की स्कूली शिक्षा के लिए काम किया। वे महिलाओं के लिए कक्षाओं में भाग लेना संभव बनाने वाले पहले व्यक्ति थे।

हालांकि उनका ज्यादातर कार्य महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हुआ। दलित आबादी उन्हें बहुत मानती है। हर साल हमारे देश में सभी लोग 28 नवंबर को आदर्श शिक्षक महात्मा ज्योतिबा फुले (Mahatma Jyotiba Phule) की पुण्यतिथि मनाते हैं। उनकी याद के इस अवसर पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी बता रहे हैं, ताकि उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों को आप भी जान सकें।

महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय – Mahatma Jyotiba Phule Punyatithi

Mahatma Jyotiba Phule Punyatithi

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को पुणे में हुआ था। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। उनके पिता का नाम गोविंदराव था और माता का नाम चिमनाबाई था। फुले का बचपन अनेक कठिनाइयों में भरा था। वे महज 9 माह के थे, जब उनकी मां का देहांत हो गया था।

आर्थिक परेशानी के कारण खेतों में पिता का हाथ बंटाने के लिए उन्हें छोटी उम्र में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन पड़ोसियों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनके कहने पर पिता ने उन्हें स्कॉटिश मिशन्स हाई स्कूल में दाखिल करा दिया। ज्योतिबा फुले का पूरा परिवार कई पीढ़ियों से माली का ही काम करता था। यही वजह है कि उनके नाम के साथ ‘फुले’ उपनाम जुड़ा हुआ था। बता दें, वे सातारा से फूल लेकर पुणे आते थे, फिर फूलों से गजरे आदि बनाने का काम करते थे।

महात्मा ज्योतिराव फुले  ने महिलाओं के उत्थान के लिए किए विशेष कार्य

महात्मा ज्योतिबा फुले ने महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष रूप से कार्य किया है। ज्योतिबा फुले  बाल-विवाह के विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। उन्होंने 1863 में गर्भवती विधवाओं के लिए एक घर शुरू किया था, जहां वे अपने बच्चों को सुरक्षित रूप से जन्म दे सकें। सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने भ्रूण हत्या और शिशु हत्या को रोकने के लिए भी एक अभियान चलाया और अनाथालय भी खोला था।

महात्मा ज्योतिबा फुले को संविधान के निर्माता मानते थे अपना तीसरा गुरू

महात्मा ज्योतिबा फुले की प्रारंभिक शिक्षा मराठी में हुई थी। सन् 1840 में उन्होंने सावित्री बाई से शादी की थी, जो खुद आगे चलकर एक महान समाजसेविका के रूप में उभरीं। इसके बाद दोनों ने मिलकर दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयास किए।

महिलाओं की शिक्षा-दीक्षा के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने 1848 में पहला गर्ल्स स्कूल खोला था। संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देश में दलितों और महिलाओं को सामाजिक न्याय देने के लिए उनके इस संघर्ष को देखते हुए उन्हें अपना तीसरा गुरू माना था।

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि पर हम सभी को समाज में उनके योगदान को याद करना चाहिए और उसका जश्न मनाना चाहिए। हमें उन कठिनाइयों पर भी विचार करना चाहिए जिनका उन्होंने एक समाज सुधारक के रूप में सामना किया और उनके द्वारा किए गए बलिदानों पर विचार किया।

महात्मा ज्योतिबा फुले के अनमोल विचार

  • ”भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान और वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे। सभी जीवों में मनुष्य श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है। स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र है।”
  • ”विद्या बिन गई मति, मति बिन गई गति, गति बिन गई नीति, नीति बिन गया वित्त, वित्त बिन चरमराए शूद्र, एक अविद्या ने किए कितने अनर्थ।”
  • ”समाज के विकास के लिए जरूरी है इसके सभी सदस्यों को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार मिले और उनके बीच भाईचारा हो।”
  • ”स्त्री हो या पुरुष, जन्म से सभी समान होते हैं। उनके साथ किसी प्रकार के भेदभाव का व्यवहार मानवता और नैतिकता के खिलाफ है।”
  • ”धर्म वह है जो समाज के हित और कल्याण के लिए है जो धर्म समाज के हित में नहीं है, वह धर्म नहीं है।”
  • ”शिक्षित समाज ही उचित और अनुचित में भेद कर सकता है, समाज में उचित और अनुचित का भेद होना चाहिए। क्यू”

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