Bail Pola Festival 2021| आज 6 सितंबर को मनाया जा रहा है छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार पोला पर्व, जानिए इसका महत्व और इतिहास

Bail Pola Festival 2021: छत्तीसगढ़ का पारंपरिक पर्व पोला (‘बैल पोला’) आज है। ये पर्व खासतौर पर किसानों, खेतिहर श्रमिक मनाते हैं। इस ‘बैल पोला’ पर्व के दिन बैलों की पूजा करके खेती-किसानी में योगदान के लिए सम्पूर्ण गौ-वंश के प्रति सम्मान और आभार प्रकट किया जाता है। हालांकि ये पर्व सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा बैल पोला का यह पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक समेत कई राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व गौ-वंश के प्रति अपना आभार दिखाने का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।

Bail Pola Festival 2021 पोला त्यौहार मनाने का इतिहास

Bail Pola Festival 2021पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसान‍ी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है।

यह त्योहार पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। विदर्भ के अधिकांश क्षेत्रों में बैल पोला उत्सव दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन बड़ा पोला और अगले दिन छोटा पोला। बड़ा पोला के दिन किसान बैल को सजाकर उसकी पूजा करते हैं, जबकि छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल सजाकर घर-घर लेकर जाते हैं। बदले में उन्हें हर घरों से पैसे अथवा उपहार मिलते हैं। इस दिन पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं।

बेटे, बेटियों को संस्कृति व परंपराओं को समझाया जाता है

Bail Pola Festival 2021अपने बेटों के लिए कुम्हार द्वारा मिट्टी से बनाकर आग में पकाए गए बैल या लकड़ी के बैल के खिलौने बनाए जाते हैं। इन मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हैं। बैल के पैरों में चक्के लगाकर सुसज्जित कर उस के द्वारा खेती के कार्य समझाने का प्रयास किया जाता है।

बेटियों के लिए रसोई घर में उपयोग में आने वाले छोटे-छोटे मिट्टी के पके बर्तन पूजा कर के खेलने के लिए देते हैं। पूजा के बाद भोजन के समय अपने करीबियों को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करते हुए एक-दूसरे के घर जाकर भोजन करते हैं।

शाम के समय गांव की युवतियां अपनी सहेलियों के साथ गांव के बाहर मैदान या चौराहों पर (जहां नंदी बैल या साहडा देव की प्रतिमा स्थापित रहती है) पोरा पटकने जाते हैं। इस परंपरा मे सभी अपने-अपने घरों से एक-एक मिट्टी के खिलौने को एक निर्धारित स्थान पर पटककर-फोड़ते हैं। जो कि नंदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने की परंपरा है। युवा लोग कबड्डी, खोखो आदि खेलते मनोरंजन करते हैं।

Bail Pola Festival 2021 पोला पर्व का महत्व

इस त्योहार का महत्व है कि रात मे जब गांव के सब लोग सो जाते है तब गांव का पुजारी-बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने कोने मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जा-जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलती है।
इनका प्रसाद उसी स्थल पर ही ग्रहण किया जाता है घर ले जाने की मनाही रहती है। इस पूजन में ऐसा व्यक्ति नहीं जा सकता जिसकी पत्नी गर्भवती हो। इस पूजन में जाने वाला कोई भी व्यक्ति जूते-चप्पल पहन कर नहीं जाता फिर भी उसे कांटे-कंकड़ नहीं चूभते या शारीरिक कष्ट नहीं होता।

बैल दौड़ प्रतियोगिता का किया जाता है आयोजन

इस दिन बैलों का श्रृंगार किया जाता है। बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। पूरे दिन बैलों से कोई भी काम नहीं लिया जाता है। इस दिन छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में बैल दौड़ प्रतियोगिता भी होती है। जिसमें किसान अपने बैलों को आकर्षक तरीके से सजाकर लाते हैं और बैल दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। हालांकि कोरोना महामारी को देखते हुए इस साल बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन नहीं किया जा रहा है।

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पोला पर्व में बनने वाला पकवान

गृहणियां इस पर्व में सुबह से गुडहा चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खूरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि छत्तीसगढी पकवान बनाने मे लग जाती हैं। पूजा कर गाय-बैल को खिलाकर तब किसान परिवार खाता है।

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